शुक्रवार, 13 जून 2008

छत्तीसगढ़ की नारी


छत्तीसगढ़ मे महिलाओ की स्थिति तुलनात्मक रूप से अन्य प्रदेशो की तुलना मे कदाचित बेहत्तर है,यहाँ की ग्रामीण महिलाओ को पुरुषो के साथ कंधे से कन्धा मिला करे काम करते देखा जा सकता है। जैसे छत्तीसगढ़ की संस्कृति मे सामंजस्य समन्वय का गुण है वैसे ही पुरूष एवम महिलाओ मे एक सामंजस्य नजर आता है,न यहाँ पर बहुत ज्यादा परदा प्रथा है न ही ग्रामीण समाज मे कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाशविक कृत्य की परम्परा ,खेती किसानी के कामो को बाट कर करते है जहा पुरूष हल चलते नजर आयेगे वही महिलाए निन्दाई गुडाई जैसे कामो मे हाथ बटाती है, यहाँ के ग्रामीण समाज मे दहेज़ का प्रचलन भी अपेक्षाकृत कम है शहरो मे भले ही दहेज़ उत्पीडन की घटनाये सुनाई दे किंतु गाव मे इस तरह की घटनाये नही होती ,पारम्परिक आदिवासी समाजो ,मे जो सुदूर बस्तर से अम्बिकापुर तक फैले हुए है ,मे महिला पुरूष के बीच सांस्कृतिक पारिवारिक समनवय और अधिक मजबूत दिखायी देता है । छत्तीसगढ़ मे स्व सहायता समूह की सफलता भी यह दर्शाती है कि यहाँ की महिलाओ मे विकास के प्रति एक ललक है और वे अपने समाज परिवार राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है ।

1 टिप्पणी:

दीपक ने कहा…

आपने सही आकलन किया है परंतु ग्रामीण महिलाओ को शिक्षा की महती आवश्यकता है !!